हमारे बड़े हमें अक्सर बताते हैं कि जब हम मन्दिर जायें, तो बाहर आने से पहले हमें कुछ देर मन्दिर में अवश्य बैठना चाहिये | इस सदियों पुराणी परम्परा के साथ एक छोटी सी प्रार्थना जुड़ी है -“अनायासेन मरणं विना दैन्येन जीवनम् । देहान्ते तव सायुज्यं देहि मे परमेश्वरम्॥“इसमें हम अपने हाथ जोड़ कर भगवान से प्रार्थना करते हैं - “अनायासेन मरणं”-“मुझे पीड़ा रहित मृत्यु देना”;“विना दैन्येन जीवनम्” – “ऐसा जीवन देना, जिसमें मैं कभी किसी पर आश्रित न होऊँ | किसी को मुझे उठाना, बिठाना या खिलाना न पड़े |” “देहान्ते तव सायुज्यं देहि मे परमेश्वरम्॥“ – “जब मृत्यु आये, तो तुम्हारा ही दर्शन हो | हे प्रभु , मुझे ये ही वर देना |” तो, जब भी मंदिर जायें, इन शब्दों को अवश्य ध्यान में रखें, जहां हम किसी भी भौतिक सुख, संपदा, यश आदि की चाह न रख कर ईश्वर से बहुत ही सुन्दर प्रार्थना कर रहें हैं | हमारे बड़े हमें अक्सर बताते हैं कि जब हम मन्दिर जायें, तो बाहर आने से पहले हमें कुछ देर मन्दिर में अवश्य बैठना चाहिये | इस सदियों पुराणी परम्परा के साथ एक छोटी सी प्रार्थना जुड़ी है -“अनायासेन मरणं विना दैन्येन जीवनम् । देहान्ते तव सायुज्यं देहि मे परमेश्वरम्॥“इसमें हम अपने हाथ जोड़ कर भगवान से प्रार्थना करते हैं - “अनायासेन मरणं”-“मुझे पीड़ा रहित मृत्यु देना”;“विना दैन्येन जीवनम्” – “ऐसा जीवन देना, जिसमें मैं कभी किसी पर आश्रित न होऊँ | किसी को मुझे उठाना, बिठाना या खिलाना न पड़े |” “देहान्ते तव सायुज्यं देहि मे परमेश्वरम्॥“ – “जब मृत्यु आये, तो तुम्हारा ही दर्शन हो | हे प्रभु , मुझे ये ही वर देना |” तो, जब भी मंदिर जायें, इन शब्दों को अवश्य ध्यान में रखें, जहां हम किसी भी भौतिक सुख, संपदा, यश आदि की चाह न रख कर ईश्वर से बहुत ही सुन्दर प्रार्थना कर रहें हैं |
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